Gudipadwa 2024: जानें इस दिन का महत्व, विधि विधान और पौराणिक कथा

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गुड़ी पड़वा

Gudipadwa 2024:  हर साल हिन्दू नववर्ष यानी चैत्र महीने के पहले दिन गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। इस दिन को उगादी भी कहा जाता है। हिन्दू नववर्ष की शुरुआत चैत्र महीने से शुरू होती है। महाराष्ट्र में हिन्दू नववर्ष को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है। यह दिन फसल दिवस का प्रतीक है। इस दिन भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। लोग इस दिन घर में रंगोली बनाते हैं, फूल माला से घर को सजाते हैं और कई तरह के पकवान भी बनाते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं और एक दूसरे के घर पर मिलने जाते हैं। इस दिन पूरन पोली, श्रीखंड और मीठे चावल भी बनाये जाते हैं।

गुड़ी पड़वा का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, गुड़ी पड़वा का दिन सृष्टि की रचना के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है की इस दिन ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसलिए इस दिन ब्रह्मा जी की पूजा का विशेष महत्व है। वहीं अन्य मान्यता यह है कि इस दिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने विदेशी घुसपैठियों को परास्त किया था। कहा जाता है की गुड़ी पड़वा के दिन बुराइयों का अंत होता है और जीवन में सुख समृद्धि आती है।

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Gudipadwa 2024 विधि विधान
  1. गुड़ी पड़वा के दिन सूर्योदय से पहले स्नान किया जाता है।
  2. इसके बाद घर के मुख्यद्वार को आम के पत्तों से सजाया जाता है।
  3. फिर घर के एक हिस्से में गुड़ी लगाई जाती है, इससे आम के पत्तों, फूल और कपड़ो से सजाया जाता है।
  4. इसके बाद ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है और गुड़ी को फेहराया जाता है।
  5. गुड़ी फहराने के बाद भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है।
Gudipadwa 2024: पौराणिक कथा

दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा का त्यौहार काफी लोकप्रिय है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग में दक्षिण भारत में राजा बलि का शासन था। जब भगवान श्रीराम को पता चला की लंकापति रावण ने माता सीता का हरण कर लिया हैं तो उनकी तलाश करते हुए वे दक्षिण भारत पहुंचे। यहाँ उनकी मुलाक़ात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने श्रीराम को बाली के कुशाशन से अवगत करवाते हुए उनकी सहायता करने में अपनी असमर्थता जारी की इसके बाद भगवान श्रीराम ने बाली का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उसके आंतक से मुक्त करवाया। कहा जाता है की वह दिन चैत्र शुकल प्रतिपदा का था। इसीलिए इस दिन गुड़ी यानि विजया पताका फहराई जाती हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार शालिवाहन ने मिट्टी की सेना बनाकर उसमे जान फूंक दी थी और दुश्मनों को परास्त किया। इस दिन को शालिवाहन शक का आरम्भ भी माना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इसे लेकर काफी उत्साह रहता है।

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