देश में जब भी कोई अपराध होता है तो 3 एजेंसियो के नाम हमेशा सुनने को मिलते हैं: CBI,CID और ED

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क्यों है ED सबसे ज़्यादा चर्चा में?

अब तक ED कई बड़े नेताओं और यहाँ तक की मनी लॉन्ड्रिंग केस में मुख्यमंत्री को भी अंदर कर चुकी हैं। कई नेता ऐसी भी है जिनके खिलाफ ED और CBI दोनों के मामले चल रहे है। ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल उठता हैं की एक ही एजेंसी केस क्यों नहीं संभालती, अलग अलग क्यों? चलिए आपको बताते है की आखिर इन तीनों में फर्क क्या होता हैं। दरअसल तीनों एजेंसियो का एक अलग क्षेत्र होता है। क्राइम के हिसाब से ही एजेन्सिया अपनी शक्तियों का प्रयोग करके आरोपियों के खिलाफ जांच करती है।

क्या है मनी लॉन्ड्रिंग संबंधित मामले?

अब जानते है इन तीनों एजेंसियो बारे में मनी लॉन्ड्रिंग संबंधी मामलों की जांच करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय यानी ED की स्थापना 1मई 19 छप्पन को हुई थी. पहले इसका नाम ‘प्रवर्तन इकाई’ यानी enforcement unit था, जो 19 सत्तावन में बदलकर ‘प्रवर्तन निदेशालय’ कर दिया गया. 1960 में इसका administrative control आर्थिक मामलों के विभाग से राजस्व विभाग यानी की revenue department के पास आ गया। मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े मामलों में ये एजेंसी PMLA कानून के तहत काम करती है।

क्या है CBI?

CBI एक जांच एजेंसी है जो केंद्र सरकार के अधीन काम करती है, और इसकी स्थापना 1963 में हुई थी। ये भारत सरकार के कार्मिक विभाग, कार्मिक पेंशन और लोक शिकायत मंत्रालय के अधीन काम करता है। भारत सरकार के आदेश पर सीबीआई किसी भी कोने में जांच कर सकती है। इसका मुख्य काम है भ्रष्टाचार, हत्या और घोटालों के मामलों की जांच करना।

अब जानते हैं CID की स्थापना के बारे में।

CID की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1902 में हुई थी। हर राज्य के पास अलग-अलग सीआईडी पुलिस है। ये राज्य सरकार के आदेश पर हत्या, अपहरण, दंगों और चोरी से जुड़े मामलों की जांच करती है। वहीं, सीआईडी से किसी भी मामले की जांच हाईकोर्ट के आदेश पर भी राज्य सरकार को करानी पड़ जाती है। इसका पूरा नाम क्राइम इन्वेस्टिंगेशन डिपार्टमेंट है।

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