Sanitary Pad: पीरियड्स एक सामान्य प्रक्रिया है जिससे हम महिलाऐं हर महीने गुजरती हैं। प्यूबर्टी के बाद हर लड़की को पीरियड्स से गुजरना पड़ता है। ये एक ऐसा विषय है, जिस पर अब खुलकर बात होने लगी है, हालांकि बहुत से लोग अभी भी इस पर बात करने में हिचकिचाते हैं। लेकिन अगर आप पर्यावरण और अपनी सेहत की परवाह करती हैं, तो आपको इससे जुडी हर चीज के बारे में जानकारी होना जरूरी है। क्योंकि ये हमारे स्वास्थय के साथ-साथ पर्यावरण से भी जुडा है। तो आईए इसके बारे में विस्तार से बात करते हैं।
Sanitary Pad पर्यावरण के लिए है बडा खतरा?
वाटरएड इंडिया और मेंस्ट्रुअल हाइजीन एलायंस ऑफ इंडिया (2018) के मुताबिक भारत में 33.6 करोड़ महिलाओं को पीरियड्स होते हैं। पीरियड्स के दौरान ज्यादातर महिलाऐं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं सैनिटरी पैड पर्यावरण के लिए बडा खतरा बन गया है। ये हमारे लिए जितने फायदेमंद होते हैं उससे कहीं ज्यादा ये हमारे स्वास्थय और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मार्केट में कई सैनिटरी पैड कंपनियां दाग न लगने तो कोई लंबे समय तक टिके रहने का दावा करती हैं। लेकिन सैनिटरी पैड बनाने वाली नामी कंपनियां इसमें बहुत ज्यादा प्लास्टिक का इस्तेमाल करती हैं।
ऐसे हो रहा पर्यावरण को नुकसान
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक सैनिटरी पैड में 90% प्लास्टिक होता है, जिससे भारत में हर साल 33 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा निकलता है। वहीं ‘टॉक्सिक लिंक्स’ नाम के एनवायर्नमेंट ग्रुप की रिपोर्ट ने बताया कि भारत में साल 2021 में 1230 करोड़ सैनिटरी पैड्स कूड़ेदान में फेंके गए। एक सैनिटरी पैड पर्यावरण को 4 प्लास्टिक बैग के बराबर नुकसान पहुंचाता है।
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सिर्फ प्लास्टिक ही नहीं, Sanitary Pad में बहुत से खतरनाक केमिकल्स का भी इस्तेमाल किया जाता है। अगर ये सैनिटरी पैड मिट्टी में दबा दिए जाएं तो इनमें मौजूद केमिकल्स मिट्टी के सूक्ष्म जीवों को खत्म करने लगते हैं जिससे हरियाली खत्म होती है। ज्यादातर सैनिटरी पैड्स में ग्लू और सुपर एब्जॉर्बेंट पॉलिमर (SAP) होते हैं जिन्हें डिकमपोज़ होने में 500 से 800 साल तक लग जाते हैं। ‘मेंस्ट्रुअल वेस्ट 2022’ की रिपोर्ट के मुताबिक सैनिटरी नैपकिन में Phthalates नाम का केमिकल इस्तेमाल होता है। जिससे कैंसर होने का खतरा हो सकता है। साथ ही इनफर्टिलिटी, पीसीओडी और एंडोमेट्रियोसिस की दिक्कत भी हो सकती है।
Sanitary Pad सेहत के लिए भी हानिकारक
इसके अलावा सैनिटरी पैड में वोलेटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स (VOCs) नाम का केमिकल भी इस्तेमाल होता है। ये केमिकल पेंट, डियोड्रेंट, एयर फ्रेशनर, नेल पॉलिश जैसी चीजों में डाला जाता है। सैनिटरी पैड में इस केमिकल की मदद से फ्रेंगरेंस यानी खुशबू जोड़ी जाती है। स्टडी के मुताबिक 10 सैनिटरी नैपकिन में 25 तरह के वीओसी केमिकल मौजूद होते हैं। ये केमिकल दिमाग पर सीधा असर करता है और स्किन के लिए हानिकारक होता है। साथ ही इससे खून की कमी, थकान, लिवर और किडनी के काम करने पर भी असर पडता है।
क्या हो सकता है सोलयुशन?
Sanitary Pad का इस्तेमाल बंद करना आसान नहीं है, लेकिन इन्हें ठीक तरह से डिसपोज़ करने का तरीका ढूंडा जा सकता है। सैनिटरी पैड्स को गलत तरीके से फेंका जा रहा है। 33% सैनिटरी पैड्स जमीन में दबा दिए जाते हैं, 28% दूसरे कूड़े के साथ डाले जाते हैं, 28% खुले में फेंक दिए जाते हैं, वहीं 28% खुले में जला दिए जाते हैं। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए।
इनके लिए अलग से डस्टबिन बनाने चाहिए। इन्हें हमेशा सूखे कचरे में ही डालें। कचरे को हमेशा कागज में लपेटकर फेंके और फेंकने के बाद हमेशा साबुन से हाथ धोएं। इन्हें टॉयलेट में कभी फ्लश नहीं करना चाहिए। इन्हें दूसरे कूड़े के साथ और घरों के बाहर, खुले मैदान या सड़क पर भी नहीं फेंकना चाहिए। सैनिटरी पैड्स को पूरी तरह डिसपोज़ करने के लिए सरकार ने एक अलग गाइडलाइन बनाई है। इस वेस्ट को आटोक्लेविंग नाम के प्रोसेस से एक निर्धारित समय में गर्म भाप के जरिए नष्ट किया जाता है। इससे बैक्टीरिया भी नष्ट होते हैं।
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