Paris Olympics Controversy: Paris Olympics शुरुआत से ही विवादों में घिरा हुआ है. इस बार मुद्दा बॉक्सिंग रिंग में उतरी वो Algerian boxer इमान खलीफ का है, जो खुद को महिला identify करती है, लेकिन जिनमें क्रोमोज़म्स पुरुषों जैसे हैं, यहां तक उनमें male hormone का level भी काफी ज्यादा है। यानी देखा जाए तो biologically वो पुरुष हैं, लेकिन खुद को महिला identify करती हैं।
अब इसे लेकर दो खेमे हो चुके। एक तबका Algerian महिला के सपोर्ट में है, तो दूसरा तबका मांग कर रहा है कि महिलाओं के खेल में जेंडर क्राइसिस से जूझते किसी भी शख्स को एंट्री न मिले।
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Paris Olympics Controversy: एंजेला कैरिनी और इमान खलीफ के बीच मुकाबला
गुरुवार को इटली की एंजेला कैरिनी और अल्जीरिया की इमान खलीफ के बीच मुकाबला था। हालांकि दूसरे पंच के बाद ही Italian boxer कैरिनी ने मुकाबले से हाथ खींच लिया। वो घुटनों पर बैठते हुए रो पड़ी थीं। साथ ही उन्हें कोच को ये कहते हुआ सुना गया कि ‘ये सही नहीं है’। बाद में प्रेस के सामने कैरिनी ने बयान दिया कि उन्हें अपने पूरे करियर में इतना ताकतवर मुक्का नहीं पड़ा था।
Paris Olympics Controversy: जेंडर टेस्ट के हवाले से ओलंपिक कमेटी पर सवाल उठाए
दरअसल, कैरिनी की कंपीटिटर इमान खलीफ वही खिलाड़ी हैं, जिन्हें साल 2023 में International Boxing Association ने जेंडर टेस्ट में फेल करते हुए मुकाबले में हिस्सा नहीं लेने दिया था। अब ओलंपिक में वो शामिल हो सकीं लेकिन पहले ही मुकाबले के बाद सवाल उठ रहा है कि महिला से टक्कर के लिए पुरुष को उतार दिया गया।
सोशल मीडिया पर बड़े इंफ्लूएंसर से लेकर एलन मस्क और J.K. Rowling तक यही बात कह रहे हैं. यहां तक कि बॉक्सिंग एसोसिएशन ने भी जेंडर टेस्ट के हवाले से ओलंपिक कमेटी पर सवाल उठाए।
Paris Olympics Controversy: इमान खलीफ की हकिकत क्या है?
लेकिन, इटली की बॉक्सर को चंद पलों में हराने वाली इमान खलीफ की हकिकत क्या है। महिला के तौर पर जन्म लेने और खुद को महिला ही मानने वाली खलीफ दरअसल, उस समस्या से जूझ रही हैं, जिसे DSD यानी Differences of sex development कहते हैं। इसमें न सिर्फ महिला में male hormone testosterone का level काफी ज्यादा हो जाता है, बल्कि उसमें male क्रोमोजोम XY होते हैं।
Female body में male hormone और क्रोमोजोम के चलते ताकत भी महिलाओं की तुलना में कुछ ज्यादा हो सकती है। ऐसे में उन्हें सीधे-सीधे बायोलॉजिकली मेल या फीमेल कहने से भी परहेज किया जाता है क्योंकि मामला वाकई जटिल है।
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Paris Olympics Controversy: महिला खिलाड़ियों की जेंडर टेस्टिंग
लेकिन ये कोई पहली बार नहीं है जब ऐसी controversy देखने को मिली है। दरअसल, जब साल 1928 में पहली बार महिला खिलाड़ियों को ओलंपिक में दौड़ने का मौका मिला था। तब लोगों को शक होता था कि इतनी तेजी से भागने-दौड़ने वाली एथलीट महिला हो ही नहीं सकती।
इसके आठ सालों के अंदर ही वर्ल्ड एथलीट्स ने तय किया कि वो संदिग्ध लगने वाली महिलाओं की जांच के बाद ही उन्हें कंपीटिशन में भाग लेने देंगे। यही जेंडर टेस्टिंग थी।
Paris Olympics Controversy: क्रोमोजोम के अलावा hormones का टेस्ट
शुरुआत में जांच के उतने पक्के तरीके न होने से एथलीट को न्यूड करके भी उसे परखा जाता था. लेकिन काफी हल्ला गुल्ला होने के बाद इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी हाइपरएंड्रो जेनिज्म की जांच करने लगी, यानी क्रोमोजोम के अलावा hormones का टेस्ट।
हलांकि साल 1999 में Mandatory Testing पर रोक लग गई लेकिन संदिग्ध लगने वाले एथलीट्स की ये जांच अब भी की जाती है।
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