North India की राजनीतिक दिशा बदलने वाला Big नारा: घातक ‘बटेंगे तो कटेंगे 20/7

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North India: जैसे-जैसे ठंड का मौसम उत्तर भारत में अपना असर दिखा रहा है, उसी तरह से वायु प्रदूषण का संकट भी तेजी से बढ़ रहा है, खासकर देश की राजधानी दिल्ली में। दिल्ली के लगभग 3 करोड़ लोग इस प्रदूषण की चपेट में आ चुके हैं। बीजेपी प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने इस बढ़ते प्रदूषण के लिए आम आदमी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि उनका गला पिछले पांच दिनों से खराब है, और इसके लिए उन्हें दवाइयां लेनी पड़ रही हैं। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस हालात के लिए केजरीवाल को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

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North India: प्रदीप भंडारी के इस बयान के बाद आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का बयान भी सामने आया, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के नारे का समर्थन किया। होसबाले का कहना था कि हिंदू एकता सभी के लिए आवश्यक है और धर्म, जाति एवं विचारधारा के आधार पर विभाजित करने वाली ताकतों से सावधान रहना जरूरी है। उनका यह बयान हिंदू समाज में एकता बनाए रखने के उद्देश्य से था। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर हिंदू समाज जाति, भाषा और प्रांत के आधार पर बंटेगा, तो निश्चित ही उसे नुकसान उठाना पड़ेगा।

बीजेपी का ‘बटेंगे तो कटेंगे’ फॉर्मूला: जातीय राजनीति पर रोक लगाने की कोशिश

North India: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहली बार 26 अगस्त 2024 को आगरा की एक रैली में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे का इस्तेमाल किया था। उनका कहना था कि जातीय, भाषाई और धार्मिक आधार पर बंटने से समाज को नुकसान होगा, और यह एकता बनाए रखने का आह्वान था। हाल ही में हिंदी पट्टी के राज्यों में जातिगत गोलबंदी को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बनते देख, बीजेपी ने इस फॉर्मूले का उपयोग करना शुरू किया।

North India: आरएसएस के साथ हुई एक हाई-लेवल बैठक के बाद यह नारा राजनीति के मुख्य एजेंडे में आया। इस बैठक में बीजेपी और आरएसएस के कई प्रमुख विचारक शामिल हुए थे, जहां जातीय उभार को रोकने पर चर्चा हुई थी। इसी के बाद से यह नारा चर्चा का विषय बना हुआ है।

जातीय गोलबंदी और हिंदी पट्टी पर प्रभाव

North India: 2024 के लोकसभा चुनावों में हिंदी पट्टी में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के नारे ने भारतीय जनता पार्टी को चुनौतियों का सामना करवाया। चुनाव परिणामों में साफ देखा गया कि यूपी, राजस्थान, हरियाणा, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बीजेपी को कई सीटों पर नुकसान हुआ। इस जातीय गोलबंदी की वजह से बीजेपी की लोकसभा सीटों की संख्या में भी गिरावट आई, और पार्टी को पूर्ण बहुमत से वंचित रहना पड़ा।

North India: जातीय मुद्दों को नियंत्रण में रखने के लिए बीजेपी ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ के जरिए जातीय राजनीति का जवाब देने का प्रयास किया है। बीजेपी का मानना है कि यदि हिंदी पट्टी के राज्यों में जातीय गोलबंदी को नहीं रोका गया, तो इससे भविष्य में पार्टी को और अधिक नुकसान हो सकता है।

क्या भविष्य में बीजेपी का ‘बटेंगे तो कटेंगे’ फॉर्मूला सफल होगा?

North India: उत्तर भारत में जातीयता पर आधारित राजनीति का लंबा इतिहास रहा है, और यह फॉर्मूला बीजेपी के लिए कितना प्रभावी साबित होगा, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन बीजेपी और आरएसएस की कोशिश है कि इस नारे के जरिए हिंदू समाज में एकता बनाई जा सके, ताकि जातीय उभार को रोका जा सके।

North India: आने वाले चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी का यह नया फॉर्मूला जातीय गोलबंदी पर अंकुश लगाने में कामयाब होता है या नहीं।

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