भारत के सबसे महत्वपूर्ण और भव्य त्योहारों में से एक, Deepawali या दिवाली को हर साल पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार का नाम “Deepawali ” दो शब्दों से मिलकर बना है – “दीप” यानी दीया और “आवली” यानी पंक्ति। इसका मतलब होता है दीयों की पंक्ति। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अज्ञानता पर ज्ञान, और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि Deepawali को खास तौर पर रात में क्यों मनाया जाता है? इस लेख में हम इस सवाल का जवाब जानेंगे और इसके पीछे छिपे धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कारणों को समझेंगे।
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1. श्री राम का अयोध्या लौटना – दिवाली की कहानी
Deepawali का त्योहार प्रमुख रूप से भगवान राम के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान श्री राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण रावण का वध करके अयोध्या लौटे, तो अयोध्या की जनता ने उनके स्वागत के लिए नगर को दीपों से सजाया। उस दिन अमावस्या की रात थी, और पूरे नगर में अंधकार था। अयोध्या वासियों ने नगर को दीयों की रोशनी से सजाया, जिससे रात का अंधकार खत्म हो गया। इसलिए इस त्योहार को रात में दीयों की रोशनी के साथ मनाने की परंपरा शुरू हुई।
2. अमावस्या की रात – अंधकार को मिटाने की परंपरा
Deepawali अमावस्या की रात को मनाई जाती है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार, सबसे अंधेरी रात होती है। यह रात स्वाभाविक रूप से अंधकारमय होती है, और इसे दीयों की रौशनी से प्रकाशित करने की परंपरा इस त्योहार का मुख्य हिस्सा है। अमावस्या की रात को अंधकार पर प्रकाश की जीत के रूप में देखा जाता है, और यही कारण है कि Deepawali की रात को घरों, सड़कों और मंदिरों में दीये जलाए जाते हैं। यह केवल प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह संदेश देता है कि अंधकार कितना भी गहरा हो, एक छोटा सा दीया भी उसे मिटा सकता है।
3. माता लक्ष्मी का आगमन – समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक
Deepawali के दिन माता लक्ष्मी, जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं, को विशेष रूप से पूजित किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि लक्ष्मी जी अमावस्या की रात में पृथ्वी पर आती हैं और वहां निवास करती हैं, जहां साफ-सफाई होती है, सजावट होती है और दीयों की रौशनी होती है। इसलिए Deepawali की रात को दीप जलाकर, घरों को सजाकर लक्ष्मी जी का स्वागत किया जाता है, ताकि वह घर में समृद्धि और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
4. कृष्ण और नरकासुर की कथा
Deepawali का एक और पौराणिक कारण भगवान कृष्ण और नरकासुर के बीच की लड़ाई से जुड़ा है। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था, जिसने कई राज्यों को आतंकित कर रखा था। नरकासुर का वध करने के बाद, कृष्ण ने 16,000 महिलाओं को मुक्त कराया, जिन्हें नरकासुर ने बंदी बना रखा था। इस घटना की खुशी में पूरे राज्य में दीप जलाए गए और इस रात को Deepawali के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई।
5. परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर
Deepawali का त्योहार भारत की हजारों वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। यह त्योहार केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। रात में दीये जलाने, पटाखे फोड़ने और रंग-बिरंगी रोशनी के माध्यम से लोग इस त्योहार को उत्सव की तरह मनाते हैं। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है, और इसका मुख्य उद्देश्य एकता, खुशी और समृद्धि का संदेश देना है।
6. विज्ञान और प्रकृति का संबंध
Deepawali को रात में मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण यह है कि अमावस्या की रात के समय तापमान गिरता है और वातावरण ठंडा होता है। इस समय जलाए गए दीये और मोमबत्तियां वातावरण को गरम बनाए रखते हैं और साथ ही हवा को शुद्ध करने में मदद करते हैं। दीयों में इस्तेमाल होने वाले तेल और घी से निकलने वाला धुआं कीटाणुनाशक का काम करता है और वातावरण में मौजूद हानिकारक कीटों को भी मारने में सहायक होता है।
7. दीपावली की रात – एकता और भाईचारे का पर्व
रात का समय स्वाभाविक रूप से शांत और स्थिर होता है। Deepawali की रात को दीये जलाने और पटाखे फोड़ने का एक और महत्व यह है कि लोग इस शांत वातावरण में परिवार, दोस्तों और समाज के साथ मिलकर समय बिताते हैं। यह त्योहार एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है, जिसमें सभी लोग एक साथ आते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।
8. आधुनिक युग में दीपावली
आज के समय में, Deepawali को मनाने का तरीका भले ही बदल गया हो, लेकिन इसका मूल संदेश और परंपरा वही है। अब लोग इलेक्ट्रिक लाइट्स, LED दीयों और अन्य सजावटी वस्तुओं का उपयोग करते हैं, लेकिन दीयों की अहमियत और महत्व अब भी कायम है। कई लोग पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस त्योहार को मनाने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे कि पटाखों का कम उपयोग और ज्यादा से ज्यादा दीयों का जलाना।
निष्कर्ष
Deepawali का त्योहार केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई की विजय और अज्ञानता पर ज्ञान का प्रतीक है। इसे रात में मनाने का कारण इसके पीछे की पौराणिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। चाहे वह भगवान राम की अयोध्या वापसी हो, अमावस्या की अंधेरी रात हो, या माता लक्ष्मी का आगमन हो – यह त्योहार हर दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है। इसलिए, Deepawali को रात में दीयों और रोशनी से सजाना एक सांस्कृतिक धरोहर और परंपरा का हिस्सा है, जो सदियों से चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी।
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