Shani Dev: शास्त्रों में बताया गया है कि शनि देव न्याय के देवता हैं और वह व्यक्ति को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं। बता दें कि शनि देव सूर्य देव के पुत्र हैं लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब वह अपने पिता से क्रोधित हो गए थे और उन्हें न्यायाधीश की उपाधि मिलने के पीछे भी रोचक कथा जुड़ी हुई है।
हिंदू धर्म में शनि देव का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है। शनिदेव साक्षात रूद्र हैं और ज्योतिष शास्त्र में यह भी बताया गया है कि शनि देव न्याय के देवता हैं और समस्त देवताओं में शनिदेव ही एक ऐसे देवता है, जिनकी पूजा प्रेम के कारण नहीं बल्कि डर के कारण की जाती है। इसका एक कारण यह भी है क्योंकि शनिदेव को न्यायाधीश की उपाधि प्राप्त है।
मान्यता है कि शनिदेव कर्मों के अनुसार जातकों को फल प्रदान करते हैं। जिस जातक के अच्छे कर्म होते हैं, उन पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है और और जो व्यक्ति बुरे कर्मों में लिप्त रहता है। उन पर शनिदेव का प्रकोप बरसता है।
Shani Dev: कौन हैं शनिदेव?
शास्त्रों के अनुसार, शनि देव भगवान सूर्य तथा माता छाया के पुत्र हैं। इन्हें क्रूर ग्रह का श्राप उनकी पत्नी से प्राप्त हुआ था। इनका वर्ण कृष्ण है और यह कौए की सवारी करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे और बाल्यावस्था में ही भगवान श्री कृष्ण की आराधना में लीन रहते थे।
Shani Dev: उनकी पत्नी ने शनि देव को श्राप दे दिया
युवावस्था में उनके पिता ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया था। एक बार जब उनकी पत्नी पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, तब न्याय देवता श्री कृष्ण की भक्ति में लीन थे। वह बाहरी संसार से पूर्ण रूप से कट चुके थे। प्रतीक्षा करके जब उनकी पत्नी थक गई, तब उन्होंने क्रोध में आकर शनि देव को श्राप दे दिया और कहा कि वह जिसे भी देखेंगे वह नष्ट हो जाएगा।
Shani Dev: श्राप वापस लेने की शक्ति उनकी पत्नी में नहीं थी
ध्यान टूटने के बाद शनिदेव ने अपनी पत्नी को बहुत मनाया और श्राप वापस लेने को कहा। उनकी पत्नी को भी अपनी भूल का पश्चाताप हुआ। लेकिन श्राप वापस लेने की शक्ति उनमें नहीं थी और इसी वजह से शनिदेव अपना सर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि उनके कारण किसी पर भी विपत्ति आए। इसलिए ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि शनि यदि रोहिणी वेतन करते हैं तो पृथ्वी पर 12 वर्षों के लिए घोर दुर्भिक्ष पड़ जाता है। जिससे जीव जंतुओं का बचना मुश्किल हो जाएगा।
Shani Dev: कैसे मिली शनिदेव को न्यायाधीश की उपाधि?
किंवदंतियों के अनुसार, जब भगवान सूर्य अपनी पत्नी छाया के पास पहुंचे तो सूर्य के प्रकाश से उनकी पत्नी छाया ने आंखें बन कर ली। इसी वजह से शनिदेव का रंग श्याम अर्थात काला पड़ गया। इसी बात से शनिदेव अपने ही पिता से क्रोधित हो गए। शनि देव ने आगे चलकर भगवान शंकर की घोर तपस्या की और इस तपस्या से उनका शरीर पूर्ण रूप से जला लिया।
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Shani Dev: भक्ति को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए
शनि की भक्ति को देखकर भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने के लिए कहा। शनिदेव ने वरदान के रूप में मांगा कि वह चाहते हैं कि उनकी पूजा अपने पिता से अधिक हो, जिससे सूर्य देव को अपने प्रकाश का अहंकार टूट जाए। भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया कि तुम नव ग्रहों में श्रेष्ठ हो जाएगे और पृथ्वी लोक पर न्यायाधीश के रूप में तुम लोगों को कर्मों के अनुसार फल प्रदान करोगे। इसलिए आज भी भगवान शनि को न्यायाधीश के रूप में पूजा जाता है और सभी ग्रहों में उनका स्थान बहुत ऊंचा है।
Shani Dev:ज्योतिष शास्त्र में क्या है शनि ग्रह का महत्व?
ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि शनि ग्रह की गणना अशुभ ग्रहों में होती है और वह नौ ग्रहों में सातवें स्थान पर आते हैं। वह एक राशि में 30 महीने तक निवास करते हैं और मकर व कुंभ राशि के वह स्वामी ग्रह है। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। वहीं शनि के गुरुत्व बल के कारण अच्छे और बुरे विचार शनि तक पहुंचते हैं, जिस वजह से कर्म के अनुसार, फल की प्राप्ति होती है। इसलिए जो लोग किसी भी प्रकार के बुरे कर्म में लिप्त नहीं होते हैं, उन्हें शनि देव से डरने की आवश्यकता नहीं है। उनकी उपासना से ही शनिदेव आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं।
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