Nepal power: राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही स्थाई दुश्मन, सिर्फ हित स्थाई होते हैं। और यही हित राजनीति में बेमेल गठबंधन बनाते हैं। नेपाल में ही.. एक बार फिर कुछ ऐसा ही हुआ है। दो पूर्व प्रधानमंत्रियों की पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई है।
KP Sharma Oli की “Communist Party of Nepal” और Sher Bahadur Deuba की “Nepali Congress” के बीच गठबंधन हो गया है। जिसके चलते पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा है।
Nepal power: ‘प्रचंड’ के जाने और ओली के वापस आने पर भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा?
13 जुलाई, नेपाल की संसद में विश्वास मत पर वोटिंग हुई थी। 275 सीटों वाली संसद में प्रचंड के समर्थन में सिर्फ 63 तो विरोध में 194 वोट पड़े थे। जिस कारण पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा है। प्रचंड के विश्वास मत हारने के बाद अब ओली और देउबा की राजनीतिक समझौते पर गठबंधन सरकार बन गई है। समझौते के तहत, बाकी के बचे कार्यकाल में दोनों ही बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद संभालेंगे।
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Nepal power: दोनों की ही विचारधारा काफी जुदा
शुरुआत में KP Sharma Oli प्रधानमंत्री बनेंगे। उनके 21 महीने बाद Deuba प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे। हालांकि, इस गठबंधन को ‘बेमेल’ कहा जा रहा है। वो इसलिए क्योंकि दोनों की ही विचारधारा काफी जुदा है। लेकिन नेपाल में इस बदली हुई सरकार का भारत पर क्या असर पड़ेगा ये समझने की कोशिश करते है। अगर इतिहास को देखा जाए। तो पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ का जाना और केपी शर्मा ओली का आना भारत के लिए थोड़ी चिंता जरूर बढ़ाएगा। क्योंकि ओली को चीन का समर्थक माना जाता है, जबकि प्रचंड भारत समर्थक नेता हैं।
Nepal power: नेपाल Belt and Road Initiative में शामिल होने के लिए तैयार
इतिहास को देखे… तो ओली जब पिछली बार प्रधानमंत्री थे, तब 2017 में नेपाल ने चीन के Belt and Road Initiative में शामिल होने के लिए तैयार हुआ था। लेकिन, हाल ही में जब चीन के उप विदेश मंत्री सुन विडोंग नेपाल के दौरे पर गए थे, तब प्रचंड की सरकार ने समझौते पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। जिस वजह से अभी इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हो पाए।
Nepal power: BRI प्रोजेक्ट्स पर काम करना चाहते हैं
हालांकि, यहां भारत के लिए एक अच्छी बात ये है कि इस बार देउबा की “नेपाली कांग्रेस” के समर्थन से ओली प्रधानमंत्री बने हैं। जिनको भारत समर्थक माना जाता है। ओली जहां चीन के साथ मिलकर BRI प्रोजेक्ट्स पर काम करना चाहते हैं, वहीं देउबा का मानना है कि BRI प्रोजेक्ट के लिए नेपाल को चीन से सिर्फ ग्रांट्स लेना चाहिए, न कि कर्ज।
इतना ही नहीं, हाल ही में एक इंटरव्यू में ओली की पार्टी के विदेश नीति के प्रमुख.. राजन भट्टराई ने कहा था कि भारत के खिलाफ जाकर न तो नेपाल आगे बढ़ सकता है और न ही नेपाली लोगों का भला हो सकता है।
Nepal power: भारत को लेकर ओली का रवैया बदला
ऐसे में उम्मीद की जा रही है। पिछले कार्यकाल में ओली का भारत को लेकर जो रवैया रहा था, वो अब बदला-बदला नजर आ सकता है। हलांकि, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ओली का रुख राष्ट्रवादी रहा है और वो सीमा विवाद-कारोबार जैसी चीजों पर भारत के खिलाफ रहे हैं। मालूम हो, 2015 में 6 महीने तक नेपाल बॉर्डर पर नाकाबंदी रही थी, तो ओली ने इसके लिए भारत को ही जिम्मेदार ठहराया था।
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Nepal power: नेपाल ने एक नया नक्शा
इसी दौरान ओली ने अपने कार्यकाल में चीन से नजदीकियां बढ़ाईं और उन्हीं के कार्यकाल में नेपाल BRI का हिस्सा बना। भारत और नेपाल के रिश्तों में तनाव तब चरम पर पहुंच गया था जब मई 2020 में जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लिपुलेख दर्रे से उत्तराखंड के धारचूला को जोड़ने वाली 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था।
तब नेपाल ने इस पर आपत्ति जताई थी। इसके बाद मई 2020 में ओली के प्रधानमंत्री रहते ही नेपाल ने एक नया नक्शा जारी किया था, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र बताया था। हालांकि, भारत ने इस दावे को खारिज कर दिया था।
भारत और नेपाल के इस बिग़ड़ते रिश्तों को हलांकि कुछ समय बाद सुधार लिया गया था। भारत, नेपाल को अपने ‘अहम दोस्त’ और ‘विकास भागीदार’ के रूप में देखता है।वहीं, ओली ने भी भारत और चीन के बीच बैलेंस बनाने की बात कही थी।
अब जब नेपाल में सत्ता बदली है। तो ऐसे में देखना होगा कि भारत-नेपाल के रिश्तों में कैसा मोड़ आता है।
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